जनसूचना ना देने वाले विभाग की रेस में बिजली विभाग सबसे आगे

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बिजली विभाग को जनसूचनाएं न देने में हासिल है महारत

-जनसूचना ना देने वाले विभाग की रेस में बिजली विभाग चल रहा है सबसे आगे

-अपनी कमियाँ छिपाने हेतु बिजली विभाग नहीं देता आरटीआई का जवाब

-75% से ज्यादा विद्युत उपभोक्ता बिजली विभाग की कार्यप्रणाली से नहीं हैं खुश

रिपोर्ट – सिद्धार्थ शुक्ला बस्ती

बस्ती। कहने को तो भारत देश को आज़ादी वर्ष 1947 में ही मिल चुकी हैं, और देश में कानून का मुकम्मल राज चल रहा है परन्तु जनता को बिजली विभाग के कार्मिकों के कदाचार से मुक्ति अभी तक नहीं मिल पायी है। आंकड़ों पर यदि नजर दौड़ाएं तो कुल बिजली उपभोक्ताओं में से लगभग 75% से ज्यादा उपभोक्ता बिजली विभाग की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट मिलेंगे चाहे वह उनके फर्जी बिलिंग का मामला हो या गलत मीटर रीडिंग का या फिर कनेक्शन लेने देने में भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला हो। या चाहे अपनी कमियाँ छिपाने हेतु विभाग द्वारा आरटीआई का जवाब ना देने का हो।


प्राप्त समाचार के अनुसार – बिजली विभाग में चल रहा भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है । कहने के लिए विभाग की प्रक्रिया आनलाइन है लेकिन कितनों की शिकायत का निस्तारण आनलाइन , बिना सुविधा शुल्क दिए हो जाता है यह भी किसी से छिपा नहीं बल्कि जगजाहिर है । विभागीय भ्रष्टाचार छिपाने की मंशा से जनसूचना आवेदकों को जनसूचनाएं उपलब्ध नहीं करायी जाती हैं , कुछ प्रकरणों में तो आवेदकों को जनसूचना उपलब्ध करान के बजाए आवेदकों को इतना दौड़ाया जाता है कि वह जनसूचना मांगना ही छोड़ देते हैं जबकि कुछ प्रकरणों में सुलझ समझौते से काम चला लिया जाता है । यदि बिजली विभाग आरटीआई प्राविधानों का पालन करते हुए सही तरीके से आरटीआई आवेदनों की जनसूचना उपलब्ध कराना शुरू कर दे बहुतेरे साहब जेल की हवा खाते नजर आएंगे।गौरतलब हैं कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 20 लोक सूचना अधिकारी (PIO) को दंडित करने से संबंधित है, जो सूचना के लिए आवेदन को अस्वीकार करने, समय पर सूचना प्रदान न करने, जानबूझकर गलत सूचना देने या सूचना प्रदान करने में बाधा डालने पर जुर्माना लगाए जाने से संबंधित है, लेकिन इन कानूनी प्रावधानों का असर शायद ही इस महकमे के कार्मिकों को पड़ता दिखाई पड़ रहा है।

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