इसरो का पहला सोलर मिशन आदित्य L1 अब धरती को अलविदा कह चुका है

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ISRO का आदित्य L1 एक्टिव, अब सूरज के हाईवे पर भर रहा रफ्तार
इसरो का पहला सोलर मिशन आदित्य L1 अब धरती को अलविदा कह चुका है और अब यह सूरज के हाईवे पर रफ्तार भर रहा है. यहां से L1 प्वाइंट पर पहुंचने के लिए भारत के सूर्ययान को तकरीबन 110 दिन का सफर तय करना होगा. L1 प्वाइंट से ही यह सूर्य पर नजर रखेगा.
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब ISRO का आदित्य L1 सूरज के हाईवे पर रफ्तार भर रहा है, पिछली रात दो बजे ISRO के वैज्ञानिकों की कमांड पर भारत के सूर्ययान ने धरती को अलविदा कह दिया. अब तक यह धरती की पांचवी ऑर्बिट में घूम रहा था. इसके लिए ISRO के वैज्ञानिकों ने सूर्ययान के इंजन ऑन किए और इसके अगले सफर के के लिए यानी L1 प्वाइंट के लिए रवाना कर दिया. अच्छी बात ये है कि धरती से विदा लेने के पहले ही आदित्य L1 एक्टिव हो चुका था और इसके साइंटिफिक डाटा भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया है.
धरती से विदा लेने के बाद अब भारत के इस सूर्ययान को अपनी मंजिल यानी L1 प्वाइंट पर पहुंचने में 110 दिन का समय और लगेगा. ISRO ने खुद इसकी जानकारी शेयर की है और बताया कि अब तक आदित्य L1 ट्रांस लैंग्रेजियन प्वाइंट के रास्ते पर है. खास बात ये है कि किसी स्पेस क्राफ्ट को धरती की ऑर्बिट से बाहर स्पेस में इंजेक्ट करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने लगातार पांचवीं बार सफलता प्राप्त की है.

अभी बाकी है 110 दिन का सफर
आदित्य एल-1 को अपनी मंजिल पर पहुँचने में अभी तकरीबन 110 दिन का सफर और तय करना होगा. इसके बाद लैंग्रेज पॉइंट 1 इसका अगला पड़ाव होगा. वहीं इसे स्थापित किया जाएगा और अगले कई सालों तक यह मिशन वहीं से अपने दायित्व का निर्वहन करता रहेगा. अभी तक की यात्रा शानदार इसलिए कही जानी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया की ओर से अब तक भेजे गए कुल 20 सूर्य मिशन कोई बहुत उल्लेखनीय काम नहीं कर पाए हैं. एक मिशन को आंशिक कामयाबी मिली है. जो सैंपल इस मिशन से मिले हैं
बाकी सभी मिशन अभी भी चक्कर लगा रहे हैं. इसलिए न उन्हें सफल कहा जाएगा और न ही असफल. हाँ, नासा का एक मिशन पायनियर ई मिशन जरूर असफल कहा गया क्योंकि यह रास्ता भटक कर कहीं और निकल गया. तय कक्षा में नहीं पहुँच पाया. इसे नासा ने साल 1969 में लांच किया था. यह एक ऑर्बिटर था. यूरोपियन स्पेस यूनियन के मिशन ने डाटा भेजना शुरू ही किया था कि उसका संपर्क टूट गया. वैज्ञानिकों ने माना कि संभवतः उसकी बैटरी ने काम करना बंद कर दिया. इसलिए संपर्क टूट गया. नासा का एक मिशन जेनेसिस सफल कहा गया. हालाँकि यह भी वापसी में क्रैश कर गया. इसे साल 2001 में लांच किया गया था.

यह प्रयास करने वाला भारत चौथा देश
भारत के पहले अब तक सारी कोशिशें अमेरिका, जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने की है. पहला प्रयास अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने की थी. इसी ने सबसे ज्यादा 14 मिशन भेजे हैं. इसका पहला मिशन पायनियर-5 साल 1960 में लांच हुआ. इसने जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर पाँच मिशन लांच किए हैं. जर्मनी ने साल 1974 और 1976 में क्रमशः हेलियोस-ए और हेलियोस-बी नाम से दो मिशन भेजे. दोनों में नासा की साझेदारी रही. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अब तक चार मिशन भेजे हैं और इनमें से तीन में नासा की साझेदारी रही है. ईएसए ने पहला स्वतंत्र मिशन साल 2021 में भेजा है.

बेहद मुश्किल है टास्क
नासा का एक मिशन पार्कर सोलर प्रॉब जरूर सूरज के 26 चक्कर काट चुका है, पर अभी भी उसे मंजिल नहीं मिली है. रास्ते में ही चल रहा है. नासा की मंशा यह जानने की है कि सूरज के कितना करीब जाया जा सकता है. यह जानना उल्लेखनीय है कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी 14.96 करोड़ किलोमीटर है. वहाँ से प्रकाश किरणों के पृथ्वी पर आने में 8 मिनट से ज्यादा लगते हैं. भारत ने आदित्य एल-1 के लिए जो पड़ाव तय किया है, उसकी पृथ्वी से दूरी 15 लाख किलोमीटर है. इसे यहीं स्थापित किया जाएगा और इसरो के साइंटिस्ट यहीं से मिलने वाले डाटा के आधार पर सूर्य के बारे में आँकलन करेंगे. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि भारतीय मिशन भी बहुत करीब नहीं पहुँच पाएगा. असल में सूर्य के करीब जाना इतना आसान नहीं, बल्कि बेहद मुश्किल टास्क है. कारण उसका ताप है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सूर्य का ताप 1.5 करोड़ डिग्री है. मतलब वह ऐसा गोला है जो कई हजार हाइड्रोजन बम जैसा पॉवर रखता है.

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