कानपुर में लाल इमली चलेगी तो परेड, सीसामऊ और ग्वालटोली बाजार फिर गुलजार होंगे। जानकारों का कहना है कि मिल चलाने के लिए कम से कम तीन से चार हजार नई भर्तियां करनी होंगी और चार सौ करोड़ के पैकेज की जरूरत होगी। मौजूदा समय में मिल में दो सौ से ज्यादा कर्मचारी और अफसर हैं जो सेवानिवृत्त की उम्र पर खड़े हैं। मिल में स्विटरजरलैंड से सालों पहले छह मशीनें आई थी। जिनकी पैकिंग तक नहीं खुली है। इनके खराब होने का अनुमान है
अंग्रेजी शासन काल 1876 में लाल इमली मिल की नींव रखी गई थी। 26 एकड़ में बनी इस मिल में प्रतिदिन लगभग तीन पाली में 8000 से अधिक श्रमिक काम करते थे। लाल इमली में 1989 से कोई नई भर्ती नहीं हुई। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने लाल इमली के सर्वोच्च गुणवत्ता से प्रभावित होकर पुरस्कार भी दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी लाल इमली की कश्मीरी टूश लोई भेंट की गई थी। जिसे वो अपने कंधे पर डाले रहते थे।
भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने निरीक्षण के दौरान लाल इमली से सेनानियों के लिए कंबल मांगे थे। उन कंबलों ने भारत की सीमा पर जंग लड़ रहे सीमा सुरक्षा बल के सेनानियों को काफी राहत पहुंचाई थी। इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री चुनी गई तब 18 जून 1981 को लाल इमली मिल का अधिग्रहण करते हुए भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय से संबंधित कर दिया। अपने गजट में कहा था कि लाल इमली मिल को कभी बंद नहीं किया जाए।
इस मिल से गरीबों को रोजगार मुहैया किया जाएगा और सस्ती दरों पर उन्हें कंबल दिए जाएंगे। 2002 तक कर्मचारियों को अंग्रेजों द्वारा बनाया गया वेतनमान सोलह आने प्रतिदिन का भुगतान किया जाता था। किसी भी छुट्टी का पैसा कर्मचारियों को नहीं दिया जाता था। तुलनात्मक अधिकारियों को शासन द्वारा 2011 में पंचम वेतनमान लागू करके भारी भरकम रकम का एरियर भी दिया गया था। श्रमिक संगठनों ने 2002 में वेतन पुनरीक्षण की मांग की थी।
लाल इमली मिल की पहचान इसके उत्पादों से थी। मिल में घड़ी लगी है। यह लगी चारों ओर से दिखाई देती है। यहां से निकलने वाले हजारों लोग इसके बजते घंटे की आवाज से समय का अनुमान लगा लेते थे। इस घड़ी में चाबी भरने के लिए चार कर्मचारी लगते थे। हालांकि बीते कई साल से घड़ी भी बंद हो गई। अब उम्मीद है कि मिल चली तो घड़ी भी चलने लगेगी।
कपड़ा बाजार में बढ़ेगी रौनक
लाल इमली मिल में बनने वाली 60 नंबर लोई, कंबल, ब्लेजर, सूट का कपड़ा, पश्मीना शॉल की बाजार में बहुत अच्छी मांग थी। शहर के थोक कपड़ा बाजार जनरलगंज, नौघड़ा, काहूकोठी आदि में इनकी मांग रहती थी। यदि मिल चलती है तो शहर के कपड़ा बाजार में फिर से पुराने उत्पाद मिल सकेंगे।
पहले कर्मचारियों का 30 महीने का वेतन, छह साल का बोनस, 2013 से लीव इन कैशमेंट और सेवानिवृत्त कर्मचारियों का तत्काल भुगतान कराया जाए। मिल चलाने की घोषणा से कर्मचारियों में खुशी की लहर है। -अजय सिंह, अध्यक्ष, लाल इमली कर्मचारी संघ
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