मोहन भागवत के मुस्लिमों के साथ संबंध बढ़ाने वाले बयान के क्या हैं मायने?

1 min read

RSS चीफ मोहन भागवत के मुस्लिमों के साथ संबंध बढ़ाने वाले बयान के क्या हैं मायने?
संघ प्रमुख मोहन भागवत का लखनऊ दौरा इसबार अलग तरह की सुर्खियां बटोर रहा है. अपने चार दिन के लखनऊ प्रवास में मोहन भागवत ने एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन बार मुसलमान को लेकर अपनी राय रखी. मुसलमानों को साथ लेकर चलने इन्हें पराया न समझने और संघ के साथ संबंध बेहतर करने की बात कही, तो लोगों का चौंकना लाजमी था.

RSS चीफ मोहन भागवत : PHOTO

सूत्रों के मुताबिक, लखनऊ में संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने मुसलमान को लेकर तीन बार बातें सामने आईं और तीनों बार संघ प्रमुख ने जो बातें कहीं, वह भविष्य के लिए संघ और मुसलमानों के संबंध की आधारशिला बन सकता है. दरअसल, इसके दो पहलू हैं. एक सामाजिक और दूसरा सियासी, लेकिन पहले यह देखिए कि मोहन भागवत ने संघ और मुसलमान के बीच रिश्ते को लेकर सबसे अहम बात क्या कही है.

मोहन भागवत ने सबसे अहम बात कही, “मुस्लिम भी हमारे हैं,संघ के लिए कोई पराया नहीं.” मोहन भागवत का ये कहना कि “जो हमारा विरोध करते हैं वे भी हमारे हैं,विरोध से हमारा नुकसान न हो संघ को बस इसकी चिंता करनी चाहिए.”
संघ प्रमुख की बातों से एक बात तो साफ है कि आरएसएस मुसलमान को लेकर अपने एक खास एजेंडा पर कम कर रहा है और रुख में बदलाव के संकेत भी इसी एजेंडे की ओर इशारा कर रहे हैं और वह एजेंडा है उदार और कट्टर मुसलमानों के बीच फर्क करना. उदार राष्ट्रवादी और ऐसे मुसलमान जो खुद को कन्वर्टेड मानते हैं, जो यह मानते हैं कि उनके पूर्वज हिंदू थे उन्हें कट्टर मुसलमान से अलग मानना और अपने साथ जोड़ना,ये संघ के एजेंडे में साफ दिखाई देता
मोहन भागवत कोई पहली बार मुसलमान को लेकर संदेश नहीं दे रहे, बल्कि वह कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि भारत के मुसलमान बाहर से आए हमलावरों के वंशज नहीं बल्कि यही पर अपना मत और मजहब बदलकर मुसलमान बने हैं जिनके पूर्वज हिंदू ही थे और उनका डीएनए भी उतना ही उदार है जितना हिंदुओं का.

यह बात तब और साफ समझ में आती है जब आरएसएस के स्वयंसेवकों की एक छोटी टोली के साथ संवाद के दौरान एक स्वयंसेवक ने मोहन भागवत से लव जिहाद और धर्मांतरण पर विचार पूछा तो मोहन भागवत ने कहा की जिन इलाकों में धर्मांतरण या लव जिहाद बढ़ा है, अगर वहां स्वयंसेवक अपनी शाखाएं लेकर जाएं तो यह समस्या खत्म हो जाएगी यानी,आरएसएस और मुसलमानों में जब संवाद बढ़ेगा तो इस बुराई पर लगाम लगेगी.
आरएसएस को लगता है कि मुसलमान को जोड़ने की अब जरूरत आ गई है, ताकि संघ की हिंदुत्व की व्यापक छतरी के नीचे वह मुसलमान भी आए, जो भारत को अपनी माता और जो खुद को हिंदू पूर्वजों का वंशज मानते हैं.

मुसलमानो को संदेश देने के लिए लखनऊ से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती थी, क्योंकि शिया और सुन्नी मुसलमानों को एक साथ संदेश देने मुसलमानों के बीच चर्चा और बहस छेड़ने के लिए ये वक्त और स्थान दोनों ही मुफीद हैं.

                                 आगामी लोकसभा चुनाव की तरफ इशारा!

सियासी जानकार मोहन भागवत के मुसलमानों को साथ जोड़ने के बयान को 2024 के चुनाव से भी जोड़ रहे हैं. उनके मुताबिक, संघ नहीं चाहता कि मुसलमान की नाराजगी इस स्तर पर चली जाए कि देश का एक बड़ा वोट बैंक पूरी तरीके से खिलाफ हो जाए और भाजपा को रोकने में अपनी ताकत लगा दे. साथ ही बीजेपी के खिलाफ नफरत और मोहब्बत को लेकर बन रहे नरेटिव की धार को भी कुंद किया जा सके. बहरहाल संघ प्रमुख के बयान की मुस्लिम धर्मगुरुओं और संस्थाओं ने तारीफ की है और जल्द ही संघ और मुस्लिम संवाद की कवायद भी दिखाई दे सकती है.

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours