उत्तर प्रदेश विधान परिषद की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सपा ने भी कीर्ति कोल को अपना उम्मीदवार बनाकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। संख्याबल देखें तो सपा उम्मीदवार की हार तय है, फिर भी लड़ाई में उतरने के अपने मायने हैं। पार्टी की नजर जनजातीय-आदिवासी समाज से उम्मीदवार उतारकर राष्ट्रपति पर टिप्पणी को लेकर आक्रामक हुई भाजपा के मुद्दे को कुंद करने पर है। वहीं, पार्टी के भीतर रहकर ‘विपक्ष’ की भूमिका निभाने वालों को भी अब स्टैंड तय करना होगा | जिन दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इसमें पहली सीट का कार्यकाल 30 जनवरी 2027 तक है, जो अहमद हसन के निधन के चलते खाली हुई थी। दूसरी सीट का कार्यकाल 5 मई 2024 तक है, यह जयवीर सिंह के इस्तीफे के चलते खाली हुई थी। दोनों ही सीटों की अधिसूचना अलग-अलग जारी हुई है। ऐसे में सामान्य बहुमत से इन पर फैसला होगा। इस लिहाज से भाजपा की दोनों सीटों पर जीत तय है। सूत्रों के अनुसार सपा ने कीर्ति कोल को अहमद हसन वाली सीट पर नामांकन करवाने का फैसला किया है , इस सीट पर भाजपा से धर्मेंद्र सिंह सैंथवार के और दूसरी सीट पर निर्मला पासवान के नामांकन के आसार हैं।
एमएलसी चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने आदिवासी समाज की कीर्ति कोल को मिर्जापुर से अपना उम्मीदवार बना कर दलित कार्ड खेला है। कीर्ति कोल पूर्व विधायक भाईलाल कोल की बेटी हैं। पिता के निधन के बाद कीर्ति ही राजनीतिक विरासत संभाल रही हैं। सपा ने उन्हें मिर्जापुर से प्रत्याशी बनाया है। वह मिर्जापुर की छानबे विधानसभा से पहले भी सपा की प्रत्याशी रह चुकी हैं और आदिवासी समाज का प्रतिनिध्व करती हैं। कीर्ति कोल एक अगस्त को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगी। समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर जानकारी दी है।
सपा की चुनौती गैर यादव ओबीसी के साथ ही एससी-एसटी वोटों को साथ जोड़ने की है। इसी महीने हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने आदिवासी समाज से द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था। उस दौरान सपा ने यशवंत सिन्हा को समर्थन किया था। इसको लेकर भाजपा ने सपा पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाया था। संसद के मॉनसून सत्र में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की टिप्पणी को भाजपा ने मुद्दा बना रखा है। ऐसे में इसी समाज से उम्मीदवार उतारकर सपा ने आदिवासी विरोधी होने की तोहमत हटाने की कोशिश की है।
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