हिंदू समेत सभी धर्मो की मनौती पूरी करती है मां वटवासिनी महाकाली – पं. राजेश पांडेय
रिपोर्ट- सिद्धार्थ शुक्ला बस्ती
सिद्धार्थनगर। जनपद के पश्चिमी छोर पर स्थित डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर इटवा मार्ग पर जाने पर चौखड़ा पहुंचकर वहां से 4 किलोमीटर पूर्व चलकर महाकाली स्थान गालापुर पहुंचा जा सकता है। महाकाली का यह स्थान आबादी से तो दूर है लेकिन शांति से भरपूर है। स्थान के चारों तरफ काफी दूर तक कोई आबादी नहीं है। स्थान के नाम विशाल वट वृक्ष है और उसे पर लटकती लताएं, और हजारों छोटी बड़ी घंटी व मनौती के धागे यही स्थान की पहचान बताती है।
स्थान तक पहुंचाने के लिए बना विशाल द्वारा स्थान तक पहुंचता है यहां आने पर श्रद्धालुओं के मन को मिलने वाली शांति उन्हें बार-बार आने पर मजबूर कर देती है। मान्यता है कि यहां श्रद्धा से मांगी गई सभी मनौती महाकाली पूरी करती हैं।
मान्यता के अनुसार लगभग 2000 वर्ष पूर्व कलहंस वंश के राजा केसरी सिंह ने अपने राजपुरोहितों से कुलदेवी महाकाली को लाने का आदेश दिया। पुरोहितों द्वारा जनपद गोंडा के खोरहस जंगल में जाकर 6 माह तक कठिन तपस्या की और फलस्वरुप काली मां प्रकट हुई और मांगने का वरदान दिया। पुरोहितों ने अपनी बात बताते हुए साथ चलने का आग्रह किया, तो माता रानी ने कहा ठीक है मैं चलूंगी, लेकिन एक शर्त है, जहां भी एक बार रख दोगे वही स्थापित हो जाऊंगी। और सामने मदार के पौधे को सिर पर रखने का आदेश देते हुए कहा कि मैं इसी में समाहित होकर चल रही हूं।
एक पुरोहित ने पौधे को सिर पर रखा और सभी पुरोहित एक साथ चल पड़े। जब सभी पुरोहित राज दरबार में पहुंचे तो राजा के कुछ चाटुकारों ने मजाक समझते हुए राजा से कहा यह मदार को सिर पर रखकर इसे महाकाली बता रहे हैं, राजा ने भी बिना विचार किए मदार को वहीं जमीन पर रख देने का आदेश दे दिया पुरोहितों ने जैसे ही मदार भूमि पर रखा एक भयंकर गर्जना के साथ धरती फटी और मदार वृक्ष उसी में समाहित हो गया। और उसी जगह से उसी समय वट वृक्ष अवतरित हुआ जो आज भी मौजूद है जिसे महाकाली स्थान गालापुर के नाम से जाना जाता है।
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