अवसाद में चल रही छात्रा ने की सुसाइड

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जिंदगी अनमोल है”: पिता को जीवन भर का दर्द दे गई बेटी, पशुबाड़े के पास पेड़ से लटका मिला शव, पढ़ें पूरा मामला
जाफरगंज कस्बे में स्कूल टॉपर से तीन अंक कम आने से अवसाद में चल रही छात्रा ने सुसाइड कर लिया। परिजनों ने बताया कि साक्षी अपने परिणाम से संतुष्ट नहीं थी और गुमसुम रहने लगी थी। साक्षी ने सोमवार रात नौ बजे घर के पशुबाड़े के पास पेड़ पर फंदा लगाकर जान दे दी।
फतेहपुर जिले में होनहार बेटी की मौत पिता को जीवन भर न भूल सकने वाला दर्द दे गई। होनहार बेटी हमेशा स्कूल में अव्वल रहती थी। अचानक ऐसा क्या हुआ कि बेटी ने फंदा लगाने जैसा कदम उठा लिया। ये सवाल पिता को हमेशा कचोटता रहेगा।


जाफरगंज के गांव पांडेयपुर निवासी योगेंद्र सिंह की पुत्री साक्षी देवी पढ़ाई में तेज थी। पिता ने बताया कि बेटी का दाखिला फिरोजपुर स्थित कृष्णा इंटर कॉलेज में कराया था। साक्षी ने स्कूल में नौवीं कक्षा में भी टॉप किया था। उसे स्कूल में सम्मानित भी किया गया।

होनहार छात्रा ने पशुबाड़े के पास पेड़ से लगाया फंदा
जाफरगंज कस्बे में यूपी बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में स्कूल टॉपर से तीन अंक कम आने से अवसाद में चल रही छात्रा ने सोमवार रात फंदा लगाकर जान दे दी। छात्रा ने परीक्षा में 600 में 572 अंक अर्जित किए थे, जबकि टॉपर के 575 अंक थे। परिजनों ने मंगलवार को शव का अंतिम संस्कार कर दिया।
स्कूल टॉपर से कम थे तीन नंबर
थाना क्षेत्र के ग्राम पांडेयपुर निवासी योगेंद्र सिंह की पुत्री साक्षी देवी (16) फिरोजपुर स्थित कृष्णा इंटर काॅलेज में 10वीं की छात्रा थी। बोर्ड परीक्षा में साक्षी ने 95.3 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। 95.8 प्रतिशत अंक स्कूल के टॉपर के आए थे। अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने पर विद्यालय में साक्षी को सम्मानित किया गया था।

परिणाम से संतुष्ट नहीं थी साक्षी
परिजनों ने बताया कि साक्षी अपने परिणाम से संतुष्ट नहीं थी और गुमसुम रहने लगी थी। साक्षी ने सोमवार रात नौ बजे घर के पशुबाड़े के पास पेड़ पर फंदा लगाकर जान दे दी। सुबह पशुबाड़े के पास पहुंची मां राम देवी ने फंदे से बेटी का शव लटकते देखा। छात्रा के पिता पेशे से किसान हैं।
माता-पिता के साथ शिक्षक का अहम रोल
मनोचिकित्सक डॉ. प्रशांत अग्रवाल कहते हैं कि बच्चे हताशा में ऐसे कदम उठा लेते हैं। ऐसे में परीक्षा से पहले ही माता-पिता को बच्चे को अच्छी तरह समझाना चाहिए कि परीक्षा में कम नंबर आने से जिंदगी खत्म नहीं होती है। अपने बच्चे की बेहतर परिणाम प्राप्त करने वाले बच्चों से तुलना नहीं करनी चाहिए। उनसे इस तरह की बातें करने पर नकारात्मकता बढ़ती है।

बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए
शिक्षक भी अमूमन अच्छे अंक प्राप्त करने वाले बच्चों पर ही झुकाव दिखाते हैं और अन्य पर हीन भावना जैसे भाव प्रकट करते हैं। शिक्षकों को कमजोर बच्चों को बढ़ावा देकर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे बच्चों को महसूस होने लगता है कि उन्हें सपोर्ट करने के लिए कोई है। माता-पिता को पहले स्वयं बच्चों के सामने कम मोबाइल प्रयोग करना चाहिए, फिर उन्हें दूर रहने की सलाह देनी चाहिए।

असफलता के लिए भी बच्चे को मानसिक रूप से रखें तैयार
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर के डॉ. धनंजय चौधरी, विभागाध्यक्ष (मनोरोग) कहते हैं कि मां-बच्चे पर अपनी अपेक्षाएं ही न थोपें, बल्कि उन्हें असफलता का मुकाबला करने के लिए भी सक्षम बनाएं। असफलता का आशय यह है कि अगर परीक्षा में अपेक्षित अंक न आएं, कम हो जाएं तो वह आत्महत्या जैसे कदम न उठाएं।

अंक जीवन में सब कुछ नहीं है, जीवन में करने को बहुत कुछ है। ऐसे में अंकों तक ही बच्चे की सफलता की सरहद तय न करें। बच्चा अपनी क्षमता भर कार्य करता है। उस पर थोपी गईं अपेक्षाएं खतरा बन जाती हैं। जब उन अपेक्षा से कुछ कम होता है तो उसे खतरनाक इम्पल्स का सामना करना पड़ता है।
तंज न कसें और न ही उसे डांटें
वह समझता है कि अंक कम हो गए तो जीवन में कुछ बचा नहीं। वह आत्महत्या जैसे कदम उठा सकता है। तरीका यह है कि बच्चे को सफलता और असफलता दोनों के लिए तैयार रखें। असफल होने पर और बेहतर करने के लिए हौसला बढ़ाएं। उस पर तंज न कसें और न ही उसे डांटें, फटकारें।

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