रायबरेली से प्रियंका गांधी का नाम तय, अमेठी के लिए राहुल के साथ उभरे दो और नए नाम

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कांग्रेस उम्मीदवार: रायबरेली से प्रियंका गांधी का नाम तय, अमेठी के लिए राहुल के साथ उभरे दो और नए नाम
रायबरेली से प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी करीब-करीब तय हो गई है। अमेठी के लिए संशय और बढ़ गया है। राहुल के साथ दो और नए नाम चर्चाओं में हैं।
रायबरेली लोकसभा सीट से प्रियंका गांधी को उतारा जाना लगभग तय है। अति विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, इसकी औपचारिक घोषणा होना भर ही शेष है। वहीं, अमेठी सीट पर अभी संशय बना हुआ है। यहां से राहुल गांधी और दीपक सिंह या विपक्ष के साझा प्रत्याशी के रूप में वरुण गांधी का नाम चल रहा है।
रायबरेली और अमेठी लोकसभा क्षेत्र गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है। रायबरेली से अभी सोनिया गांधी सांसद है, लेकिन वर्ष 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के राहुल गांधी को हराकर अमेठी सीट छीन ली थी। सोनिया गांधी राज्यसभा सांसद बन चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक, रायबरेली सीट पर प्रियंका गांधी को ही उतारने का निर्णय लिया गया है।


कांग्रेसजन अमेठी से राहुल गांधी के लड़ने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, राहुल गांधी वहां से चुनाव लड़ने के ज्यादा इच्छुक नहीं बताए जा रहे हैं। यहां से पूर्व एमएलसी दीपक सिंह का नाम आगे चल रहा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इंडिया खेमे में इस प्रस्ताव पर भी विचार किया जा रहा कि पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी को विपक्ष के साझा प्रत्याशी के रूप में अमेठी से उतारा जाए। इस बार भाजपा ने पीलीभीत से उनका टिकट काट दिया है। हालांकि, बताते हैं कि वरुण गांधी पिछले कई दिनों से कोविड से पीड़ित हैं। इसलिए अंतिम निर्णय अभी नहीं लिया जा सका है। इस बारे में वरुण से संपर्क करने की कोशिश की गई, पर उनसे बात नहीं हो सकी
यूपी में खामोशी से प्रचार की रणनीति पर विपक्ष
प्रदेश में विपक्षी गठबंधन में शामिल दल खामोशी से प्रचार की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। बड़ी रैलियों के बजाय लोकसभा क्षेत्र के स्तर पर छोटी-छोटी सभाएं करने पर जोर रहेगा। हर चरण के चुनाव में एक-दो ही बड़ी रैलियां करने की योजना तैयार की जा रही है।

पहले चरण के लिए मतदान 19 अप्रैल को होना है लेकिन अभी तक सपा और कांग्रेस ने अलग-अलग या संयुक्त रूप से एक भी रैली नहीं की है। सपा के एक नेता नाम न छापने के अनुरोध के साथ बताते हैं कि इस बार पार्टी मतदान से पहले बड़े पैमाने पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करना नहीं चाहती है। इसके पीछे की वजह यह है कि अपने मजबूत गढ़ों में भाजपा को सक्रियता बढ़ाने के लिए न उकसाया जाए।

कांग्रेस में गांधी परिवार के एक नजदीकी नेता बताते हैं कि यूपी में पिछले चुनावों में बड़ी रैलियां कीं लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। इस बार तो कांग्रेस धन के संकट से भी गुजर रही है। सही बात तो यह है कि प्रत्याशी भी खामोशी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। क्योंकि क्षेत्र में जो भी उनकी मजबूत पॉकेट हैं, वे नहीं चाहते कि भाजपा उनमें सेंध लगाने में जुट जाए। इंडिया गठबंधन में शामिल दलों की रणनीति यह है कि उनके बेस वोट में जो भी अन्य मतदाता प्लस हो सकते हैं, उन पर बिना किसी शोर-शराबे के फोकस किया जाए।

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