होता पक्का मकान तो बच जाती किशोरियों की जान
प्रधान और पंचायत सचिव की संवेदनहीनता का शिकार हुआ गरीब निषाद परिवार
जर्जर कच्चा मकान ढहने से हुई मौसेरी बहनों की मौत का मामला
चांदा ।।सुलतानपुर
प्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही के कारण दो मासूम मौसेरी बहनों की जान चली गई। बात कर रहे प्रतापपुर कमैचा विकास खंड क्षेत्र के सोनावां ग्राम पंचायत के बडा केवटान बस्ती निवासी गरीब शिवशंकर निषाद की। लंबे समय से कच्चे मकान में अपने परिवार जीवन यापन कर रहे शिवशंकर ने कई बार प्रधानमंत्री आवास की मांग मौखिक रुप से पंचायत प्रतिनिधियों से कर चुका था, लेकिन पंचायत प्रतिनिधि गरीब की मांग को नहीं सुन पाए। दिनभर मेहनत मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण कर रहे शिवशंकर के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने कच्चे मकान को ठीक कर पाए। नतीजा रहा कि रविवार की आधी रात सोते समय कच्चा मकान भरभराकर ढह गया। घर में सो रही चार बेटियां मलबे में दब गईं, दो मौसेरी बहनों की मलबे में दबकर मौत हो गई। आधी रात मलबे से शवों को निकाला गया तो पूरा गांव शोक में डूब गया।
हर कोई इसी बात पर चर्चा करता रहा कि अगर गरीब परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना का सहारा मिल गया होता तो शायद आज परिवार के सदस्य जिदा होते। लेकिन अब इसका कोई लाभ नहीं। केंद्र व प्रदेश सरकार ने कुछ समय में भले ही लाखों गरीबों को पक्का मकान के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बजट दिया हो, लेकिन सोनावा ग्राम पंचायत के बड़ा केवटान बस्ती निवासी शिवशंकर निषाद को योजना का लाभ न मिलने पर परिवार की दो बेटियों की अर्थियां उठी।
प्रतापपुर कमैचा ब्लॉक क्षेत्र अंतर्गत सोनावा ग्राम पंचायत के बड़ा केवटान बस्ती में शिवशंकर निषाद पुत्र राम मूर्ति निषाद का कच्चे मकान रविवार की रात अचानक ढह गया। मलबे में दबकर उसकी तीन बेटियां दर्पण, बबीना, बीना व उसके साढू की पुत्री राधिका जख्मी हो गईं। मौसेरी बहनें राधिका व दर्पण की मौत हो गई। दो मौतों के बाद प्रशासन की नींद टूटी और अब अहेतुक राशि के साथ ही अन्य सरकारी सुविधाएं दिलाए जाने का आश्वासन देकर पीडित परिवार के आंसू पोंछने की कवायद शुरू हुई है।
सोनावा ग्राम पंचायत की नुमाइंदगी संतोष पांडेय कर रहे हैं, यानी प्रधान हैं। पंचायत सचिव रमेश यादव हैं। सचिव रमेश यादव से बात की गई तो उन्होंने कहाकि शिवशंकर पात्र तो जरूर है, परंतु पात्रता सूची में उसका नाम नहीं है। इसकी वजह से उसे आवास का लाभ नहीं दिया जा सका। सवाल उठता है कि क्या पात्रता सूची में नाम डालते समय पात्रों को दरकिनार कर दिया गया था? या जानबूझ कर उसका नाम सूची में नहीं डाला गया था? क्या इसी दिन का जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों को इंतजार था? ऐसे तमाम सवाल उठ रहे हैं, जिनका जवाब देने वाला कोई नहीं है।
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