जैवलिन थ्रो मे भारत ने रचा इतिहास अनु रानी ने जीता गोल्ड

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जैवलिन थ्रो के नाम से भारतीय फैंस के जहन में सिर्फ एक ही शख्स जहन में आता है, और वह है नीरज चोपड़ा। लेकिन आज जो अन्नू देवी ने किया है उसके बाद से नीरज के साथ उन्हें भी याद किया जाएगा।

हांगझोउ: उत्तर प्रदेश के मेरठ से सटे सरधना के बहादुरपुर गांव निवासी एथलीट अनु रानी ने आज भाला फेंक में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता। इस जीत के साथ उनके परिवार और गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनु रानी के शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें बधाई दी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर आदित्यनाथ ने अंग्रेजी में लिखे एक संदेश में कहा,’बधाई हो, अनु आपके अद्भुत गोल्डन थ्रो पर! आपका 62.92 मीटर का थ्रो शानदार था, जो आपकी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। आपकी उपलब्धियाँ हम सभी को प्रेरित करती हैं। जय हिन्द!’

Annu Rani : Image Source internet

किसान परिवार की अनु बचपन से ही इसमें अपना करियर बनाना चाहती थी, लेकिन उनके पिता इसके लिए राजी नहीं थे। हालांकि, उन्होंने पिता को मनाना जारी रखा था। अनु के पिता अमरपाल सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा ‘हम बहुत छोटे से किसान है। मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। इनमें अनु(28) सबसे छोटी है। सबसे बड़ा बेटा उपेन्द्र है। छोटा बेटा जितेन्द्र है। बेटी रीतू, नीतू और अनु रानी हैं।’
बिटिया का भाले से नाता कब जुड़ा यह पूछने पर अमरपाल सिंह बताते हैं- ‘बड़े भाई उपेंद्र और अपने चचेरे भाइयों को देखकर अनु का इस तरफ झुकाव हुआ उस समय वह नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। बड़ा भाई उपेन्द्र उस समय यूनिवर्सिटी स्तर पर दौड़ और भाला फेंक में हिस्सा लेता था। उन्हें अपनी बहन के थ्रो में कुछ खास लगा। उन्हें लगा कि अनु भी भाला फेंक सकती है।’

उन्होंने बताया कि बेटे ने घर आकर मुझे इसके बारे में बताया तो ‘मैंने इनकार कर दिया। कहा- बेटी है, अकेली कहां जाएगी? इसके खेल और खुराक का खर्चा कैसे उठाएंगे? क्योंकि हम बहुत छोटे किसान हैं। गांव में हमारे पास थोड़ी बहुत ही जमीन है। उस समय उपेंद्र 1500, 800, 400, पांच हज़ार मीटर की दौड़ और भाला फेंक का खिलाड़ी था।’
अमरपाल कहते हैं ‘मेरे मना करने के बाद भी मेरा बेटा उपेन्द्र अपनी बहन को चोरी-छिपे सुबह-सुबह अपने साथ खेतों में ले जाता और गन्ने का भाला बनाकर उससे अभ्यास कराता। अनु के पास अच्छे जूते नहीं थे, तो वह भाई के जूते पहनकर दौड़ती थी। दोनों के पैरों का साइज एक था। यह अनु की खेल प्रतिभा है कि उसने आज न सिर्फ परिवार और अपने गांव का बल्कि देश का नाम पूरी दुनिया में कर दिया।’

अमरपाल कहते हैं,बाद में स्कूल के शिक्षकों ने भी बिटिया की प्रतिभा का जिक्र करते हुए उसकी सिफारिश की, जिसके बाद उन्हें बेटी की बात माननी पड़ी। अमरपाल ने कहा,‘मुझे गांव के लोगों से जब बेटी की आज की कामयाबी का पता चला तो मैं बता नहीं सकता कि मुझे कितनी खुशी हुई। इसी के साथ अपनी बेटी की प्रतिभा पर गर्व हुआ।’
अमरपाल कहते हैं, ‘मुझे तो पहले यह डर था कि बेटी को खेलने के लिए दूर-दूर जाना पड़ेगा। लेकिन,देखिए अब वही बेटी अपने खेल की बदौलत इतना दूर निकल आई कि चीन के हांगझोउ शहर में खेले जा रहे एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत लिया।’

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