दफ्तरों में हुईं बैठकें और जेसीबी लेकर बनभूलपुरा पहुंचा प्रशासन…तबादले भी बने घटना की वजह
हल्द्वानी हिंसा के मामले में पुलिस का कहना है कि कार्रवाई के लिए आठ दिनों से तैयारियां चल रही थीं। लेकिन सवाल है कि तैयारियां थीं तो इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई। सच तो यह है कि पुलिस प्रशासन ने सिर्फ दफ्तरों में बैठकर बैठकें की और फिर एकाएक बृहस्पतिवार को जेसीबी लेकर अतिक्रमण हटाने पहुंच गए।
इसके लिए न तो स्थानीय लोगों को विश्वास में लिया गया और न ही सत्यापन के दौरान मकानों की चेकिंग हुई। इसी का परिणाम रहा कि छतों पर रखे पत्थर जब बरसे तो मौके पर गए सरकारी अमले को जान बचाना भी भारी हो गया। दरअसल, हल्द्वानी में भड़की हिंसा में सबसे पहले पुलिस और प्रशासन की लापरवाही उजागर हो रही है।
आधी-अधूरी तैयारियों के बीच की गई कार्रवाई से ही वहां पर हिंसा भड़की। लेकिन, इस कांड के बाद पुलिस मुख्यालय का कहना है कि पुलिस की तैयारियों में कमी नहीं थी। इसके लिए लगातार गत 30 जनवरी से तैयारियां चल रही थीं।
बैठकें हो रही थीं और सभी स्थितियों पर नजर रखी जा रही थी। अब ये कैसी तैयारी थी और क्या बैठक प्रशासन कर रहा था कि मौके पर जाकर इतनी गंभीर हिंसा भड़क उठी। वहां पुलिस को संभलने तक का मौका नहीं मिल सका। जबकि, ऐसी किसी भी कार्रवाई से पहले पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इलाके में घूमते हैं। सत्यापन किया जाता है। जिम्मेदार लोगों को विश्वास में लिया जाता है।
पुलिस को अधिकार है कि वह किसी भी मकान में जाकर वहां जांच पड़ताल कर ले। मौजूदा समय में ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल भी इस तरह की चेकिंग और सत्यापन के लिए किया जाता है। मगर दुर्भाग्य से पुलिस और प्रशासन ने ऐसा कोई काम नहीं किया। खुफिया रिपोर्ट को भी दरकिनार कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक तैयारियां तो हुईं लेकिन सिर्फ बैठकों में। ब्रीफिंग और फ्लैग मार्च भी हुए लेकिन इनका कोई असर कार्रवाई के दौरान नहीं दिखा।
हाल में पुलिस विभाग में चुनावों के मद्देनजर बड़े पैमाने पर तबादले हुए। इससे जिले में लगभग हर अधिकारी और कर्मचारी इधर से उधर हो गए। सीओ, एसपी सिटी समेत सभी कर्मचारी इस जगह से अनजान थे। शायद उन्होंने वहां के माहौल को केवल समाचार पत्रों और अन्य मीडिया माध्यमों से ही सुना और देखा था। माना जा रहा है कि पुराने अधिकारी वहां होते तो स्थिति फिर भी बेहतर हो सकती थी।
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