कानपुर में धुंध से बढ़ा खतरा , 5 की मौत

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जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य वरिष्ठ सांस रोग विशेषज्ञ प्रो. एसके कटियार ने बताया कि इस मौसम में स्मॉग रहता है। इसमें ओजोन गैस से सांस की नली में सूजन आ जाती है। कोरोना के कारण जिनके सांस तंत्र में क्षति हुई है। वैसे वे दवाओं से सामान्य रहते हैं, लेकिन इस मौसम में उन्हें दिक्कत जल्दी और गंभीर हो जाती है।

जो लोग कोरोना की चपेट में आए हैं, वे धुंध के इस मौसम में सतर्क रहें। कोरोना सांस तंत्र खोखला कर गया है। मौसम बदलने से धुंध बढ़ी है तो दवा से नियंत्रित चल रहे दमा और सीओपीडी (सांस नली और फेफड़ों का सिकुड़ जाना) के रोगियों का खतरा बढ़ गया है। दम घुटने से रोगियों की हालत अचानक गंभीर हो जा रही है धुंध के कारण वाहनों का धुआं ऊपर नहीं जा पाता। नाइट्रस एसिड ओजोन गैस में बदलकर दम घोंट दे रहा है। गुरुवार को पांच दमा रोगियों की मौत हो गई। कई रोगी गंभीर हालत में अस्पतालों में वेंटिलेटर पर भर्ती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पतालों में आ रहे दमा रोगियों की सांस की नली में सूजन आ रही है। इससे ये सांस नहीं ले पाते।

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इनमें ज्यादातर रोगी कोरोना की चपेट में आए थे। रोगियों के फेफड़ों में सामान्य लोगों की तुलना में जल्दी निमोनिया हो जाता है। गुरुवार को दमा रोगी शिवराजपुर के रसूल बाबू, मूलगंज के मो. तारिक, शिवकटरा की अरुणा, भार्गव स्टेट के सचिन की मौत हो गई। सचिन को बेहोशी की हालत में लाया गया, वह सांस नहीं ले पा रहा था।

तारिक के फेफड़ों में निमोनिया भी हो गया था। हालत बिगड़ने पर रोगियों को उर्सला लाया गया। इसी तरह दमा रोगी कल्याणपुर के सत्यप्रकाश की मौत हो गई। उनके परिजन विनोद ने बताया कि निजी अस्पताल से उन्हें हैलट रेफर किया गया। रास्ते में सांस रुक गई। उनकी मौत से परिजन रो-रोकर बेहाल हो गए।

वाहनों के धुएं, औद्योगिक प्रदूषण में नाइट्रस ऑक्साइड होती है। जब इस पर धूप पड़ती है तो यह ओजोन गैस में परिवर्तित हो जाती है। ओजोन गैस फेफड़ों में सूजन बढ़ाती है। इससे सांस की दिक्कत होती है। इससे अटैक की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है। धुंध में पाई जाने वाली ओजोन लेयर वातावरण के ऊपर की ओजोन पर्त से अलग होती है।

-प्रोफेसर (डॉ.) एसके कटियार, पूर्व प्राचार्य जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज

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